ख्वाजा ग़रीब नवाज़ बचपन ही से ग़रीबो की मदद करते थे:मुफ्ती अकमल अशरफी

-------------तन्ज़ीम बरेलवी उलमा-ए-अहले सुन्नत के ज़ेरे एहतिमाम जशने ग़रीब नवाज़ का दूसरा जलसा हीरामन पुरवा मे हुआ--------------


कानपुर:हिन्दुस्तान के राजा हम सबके ख्वाजा हज़रत मोईनुद्दीन चिश्ती रजि अल्लाहु अन्हु की विलादत (पैदाईश) 14 रजब को सन्जर की सर ज़मीन पर सुबह के वक्त हुई आपकी वालिदा फ़रमाती हैं मेरा मोईन जब मेरे पेट मे था तो कलमा तैय्यबा का विर्द किया करता था और मै अपने कानो से सुना करती थीं आप बचपन ही से ग़रीब नवाज़ थे ईद का दिन था हर तरफ खुशी का माहौल था ग़रीब नवाज़ के बचपने का ज़माना था आप अपने घर वालो के साथ अच्छे कपड़े पहन कर ईद की नमाज़ पढ़ने ईदगाह जा रहे थे रास्ते मे एक नाबीना लड़के को फटा पुराने कपड़े मे देखा तो गरीब नवाज़ को उसकी लाचारी पर बहुत दुख हुआ फिर आपने अपना खुबसूरत औप क़ीमती कपड़ा उस ग़रीब को दे दिया और खुद दूसरे कपड़े पहनकर उसे अपने साथ ईदगाह ले गए इन ख्यालात का इज़हार तन्ज़ीम बरेलवी उलमा-ए-अहले सुन्नत के ज़ेरे एहतिमाम मस्जिद हाजी दानु हीरामन का पुरवा मे हुए जशने ग़रीब नवाज़ के दूसरे जलसे मे तन्ज़ीम के सरपरस्ते आला मुफ्ती सैयद मोहम्मद अकमल अशरफी ने किया तन्ज़ीम के सदर हाफिज़ व क़ारी सैयद मोहम्मद फ़ैसल जाफरी की सदारत मे हुए जलसे को मौलाना ने आगे कहा कि ख्वाजा ग़रीब नवाज़ पैदाईश से ही गरीब नवाज़ थे और आपकी यह सिफत हयाते ज़ाहिरी ही मे नही बल्कि विसाल के बाद आज तक आपसे जुदा न हुई आपने चौदह साल की उम्र मे  क़ुरआन को हिफ्ज़ किया और ग़रीब नवाज़ ने हज़रत ख्वाजा उस्माने हारूनी से उनके वतन हारौन मे पहली बैअत का शर्फ हासिल किया फिर आपके पीरो मुर्शिद आपसे इतनी मोहब्बत करने लगे और आपको बगदाद शरीफ ले गए फिर पीरो मुर्शिद के साथ काबा शरीफ की जियारत कई बार की लेकिन जब 583 हिजरी मे आप मक्का शरीफ पहुँचे तो एक दिन इबादत मे इतना खो गए कि गैब से आवाज़ आई ऐ मोईनुद्दीन हम तुझसे खुश हैं और हमने तुझको बख्श दिया जो कुछ चाहे हमसे मॉग ले हम अता करेंगे आपने अर्ज़ की खुदावन्दा मोईनुद्दीन के मुरीदों को बख्श दे ग़ैब से आबाज़ आई जा मोईन मैने तेरे मुरीदों और मोहब्बत करने वालों को बख्श दिया फिर हज के बाद मदीना शरीफ़ पहँचे और काफी अर्से तक वहँ इबादत करते रहे इस मौक़े पर आपको दरबारे रिसालत से बशारत हुई ऐ मोईनुद्दीन तू मेरे दीन का मोईन है मैने तुझे हिन्दुस्तान की विलायत अता करता हुँ जा और वहाँ जो ज़ुल्मत फैली है उसे नूर मे बदल दे और अजमेर जा तेरे वजूद से वहाँ की कुफ्र व ज़ुल्मत दूर होगी और इस्लाम का उजाला फैलेगा आप नबी के हुक्म पर हिन्दुस्तान के शहर अजमेर तशरीफ़ आए और वहीं से इस्लाम की तब्लीग़ शुरू की और 90 लाख लोगो को कलमा पढ़ाकर इस्लाम मे दाखिल फ़रमाया इससे पहले जलसे का आगाज़ तिलावते क़ुरआन पाक से हाफिज़ सुहैल अहमद ने किया और निज़ामत क़ारी आदिल रज़ा अज़हरी ने की हाफिज़ फहीम,हाशिम कानपुरी,मोईनुद्दीन,मुज़म्मिल,अदनान अन्सारी ने नात पाक पेश की जलसा सलातो सलाम व दुआ के साथ खत्म हुआ जलसे के बाद शीरनी तक़सीम हुई इस मौक़े पर मौलाना मोहम्मद उस्मान,मौलाना गज़ाली,हाफिज़ इरफान रज़ा क़ादरी,अच्छे मियाँ,मोहम्मद तारिक़ आदि लोग मौजूद थे!


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