हज़रत मख्दूमे माहिमी बचपन से ही वालदैन के फ़रमॉ बरदार और खिदमत ग़ुज़ार थे:मौलाना हस्सान क़ादरी
तन्ज़ीम बरेलवी उलमा-ए-अहले सुन्नत के ज़ेरे एहतिमाम बाबूपुरवा मे उर्स मख्दूम अली माहिमी मनाया गया
कानपुर: बर्रे सग़ीर में जा बजा औलियाए किराम के मज़ारात हैं जो बरसों से लोगों के लिये किब्लए अक़ीदत बने हुए हैं उन्हीं में एक नाम हज़रते मख़्दूम अली माहिमी रजि अल्लाहु अन्हु भी हैं
आपकी विलादत (पैदाइश) माहिम शरीफ (मुम्बई) में 10 मोहर्मुल हराम को फिरोज़ शाह तुग़लक़ के दौर में हुई, आपका तारीख़ी नाम अली या अलाउद्दीन है, आपके वालिदे करीम हज़रते शैख़ अहमद भी अपने वक़्त के जलीलुल क़द्र वली थे तालीम व तरबीयत वालिदे करीम से ही हासिल फरमाई, फिक़ह, मन्तिक़ फल्सफा, हदीस व तफ्सीर के उलूम की तक्मील भी वालिद साहब से ही हासिल की
और कुछ रिवायात के मुताबिक़ वालिद के इन्तेक़ाल के बाद हज़रते खिज़्र अलैहिस्सलाम से बाक़ी इल्म हासिल किया इन ख्यालात का इज़हार तन्ज़ीम बरेलवी उलमा-ए-अहले सुन्नत के ज़ेरे एहतिमाम बाबूपुरवा के अल हरम क्लाथ इम्पोरियम मे हुए उर्स मख्दूम अली माहिमी मे तन्ज़ीम के मीडिया इंचार्ज मौलाना मोहम्मद हस्सान क़ादरी ने किया तन्ज़ीम के सदर हाफिज़ व क़ारी सैयद मोहम्मद फ़ैसल जाफ़री की सदारत मे हुए जलसे को मौलाना ने आगे कहा कि 
हज़रते मख़दूमे माहिमी बचपन से ही बड़े बा अदब, वालिदैन के फरमाँ बरदार और खिदमत गुज़ार थे, एक बार इशा के बाद आपकी वालिदा ने पानी माँगा, जब आप पानी लेकर गए तो वालिदा को नींद आ गई थी, आपने वालिदा को बेदार नहीं किया बल्कि इन्तेज़ार करने लगे, जब वक़्ते तहज्जुद आया और वालिदा बेदार हुईं तो बेटे को पानी लिये पास खड़ा पाया, उठ कर वुज़ू किया और बारगाहे मौला में हाथ उठा कर अर्ज़ की परवरदिगार मेरे बेटे को मन्सबे विलायत पर क़ाएम फरमा
आप बड़े फय्याज़, दर्दमन्द और हर मज़हब के लोगों की दिल खोल कर मदद फरमाते थे, दस्तर ख़्वान पर हमेशा मेहमानों की भीड़ रहती थी, हर मज़हब के लोग आपकी ताज़ीम करते
आप अक्सर इबादत व रियाज़त में मश्ग़ूल रहते और इन औक़ात में दुनिया को भूल जाते
जब आपकी शोहरत बादशाह तक पहुंची तो उसने अपनी बहन के साथ आपका निकाह कर दिया एक बार कुछ शाही औरतें आपके घर पर आईं उस वक़्त आप हालते वज्द में थे और घर की दहलीज़ पर बैठे थे, औरतें देख कर झिझक गईं तो आपकी वालिदा ने करा डरो मत अंदर आ जाओ मेरा बेटा इस वक़्त किसी और दुनिया में है, वह औरतें अंदर आ गईं और पूछने लगीं कि हमें कैसे पता हो कि मख़्दूम साहब किसी और दुनिया में हैं?
तो वालिदा एक तहबन्द लेकर आपके पास आईं और कहा बेटे तहबन्द बाँध कर अपने कपड़े उतार दो ताकि इसे धो दूँ, आपने कपड़े उतार कर उन्हें दे दिये जब्कि वह कपड़े बिल्कुल साफ थे, आपकी वालिदा कुछ देर बाद गंदे कपड़े लेकर आईं और कहा बेटा यह साफ कपड़े पहन कर पहने हुई तहबन्द मुझे दे दो ताकि मैं धो डालूँ तो आपने गंदे कपड़े पहन लिये, वालिदा ने कहा देखा मेरे बेटे को, जब वह अपने रब के साथ होता है तो उसे दुनिया की कोई ख़बर नहीं होती
आप बा करामत वली थे, एक बार एक हिन्दू ताजिर का जहाज़ सामाने तिजारत लेकर किसी बंदरगाह के लिये रवाना हुआ मगर 7 साल गुज़र गए और वह जहाज़ वापस ना आया, उस ताजिर की सारी कमाई उस जहाज़ में थी, उसने कई पंडितों और नुजूमियों से पूछा और सब ने यही बताया कि तुम्हारा जहाज़ डूब चुका है
उसके किसी दोस्त ने कहा तुम मख़्दूम अली माहिमी से पता करो तो वह आपकी खिदमत में हाजिर हुआ आपने उसे देख कर फरमाया जाओ अल्लाह ने चाहा तो तुम्हारा जहाज़ वापस आएगा इतना सुन कर वह साहिल पर खड़़ा होकर जहाज़ का इंतेज़ार करने लगा, उसी बीच उसे अपना जहाज़ आता दिखाई दिया, जब उसे अपना जहाज़ मिल गया तो वह आपका आशिक़ हो गया और अपनी बीवी बच्चों के साथ आपकी बारगाह में हाजिर होकर मुसलमान हो गया आपकी सारी जिन्दगी इंसानियत की भलाई के लिये वक़्फ थी, नमाज़, रोज़ा, इमदाद, सिला रहमी वग़ैरह से आप बड़ी मोहब्बत फरमाते थे, आप बड़ी ही पाकीज़ा तबीअत के हामिल थे
आपकी वफात 59 साल की उम्र में 8 जमादिल आखिर 835 हिजरी में हुआ और मज़ारे पाक माहिम शरीफ (मुम्बई) में है, आपके अक़ीदत मंदों ने मज़ार के क़रीब एक मक़बरा और मस्जिद भी तामीर कराई जो आज भी मौजूद है, हर साल बड़े पैमाने पर आपका उर्स मुंअकिद होता है जिसमें हर मज़हब और मसलक के लोग शरीक होते हैं और आप सब पर अपना फैज़ान नाजिल फरमाते हैं इस मौक़े पर फातिहा ख्वानी हुई और हाफिज़ सैयद मोहम्मद फ़ैसल जाफ़री ने बीमारो को शिफ़ा,बेरोज़गारो को रोज़गार, मुसलमानो की जान माल इज्ज़त आबरू की हिफ़ाज़त की दुआ की फिर शीरनी तक़सीम हुई कन्वीनर वसीमुल्लाह रज़वी ने आए हुए हुए मेहमानो का शुक्रिया अदा किया हाफिज़ मोहम्मद अरशद, रूमान इस्लाम,अफ़रोज़ आलम, मोहम्मद फ़ैसल,मोहम्मद ज़ीशान, मोहम्मद तारिक़, कमालुद्दीन, मोहम्मद अतीक़ आदि लोग मौजूद थे!

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