तन्ज़ीम बरेलवी उलमा-ए-अहले सुन्नत के ज़ेरे एहतिमाम जश्ने गौसुलवरा व इस्लाहे मआशिरा का तीसरा जलसा हीरामन पुरवा मे आयोजित


कानपुर। वलियों के सरदार शेख मुहीउद्दीन अब्दुल क़ादिर जीलानी रजि अल्लाहु अन्हु की बारगाह मे खिराजे अक़ीदत पेश करने के लिए तन्ज़ीम बरेलवी उलमा-ए-अहले सुन्नत के ज़ेरे एहतिमाम जशने गौसुलवरा व इस्लाहे मुआशिरा का तीसरा जलसा मस्जिद मुबीनुल हक हीरामन पुरवा में हुआ जिसकी सदारत तन्ज़ीम के सदर हाफिज़ व क़ारी सैयद मोहम्मद फैसल जाफरी ने की तन्ज़ीम के प्रवक्ता मौलाना मोहम्मद उमर क़ादरी ने खिताब फरमाते हुए कहा कि सरकारे ग़ौसे आज़म के नाना जान हज़रते अब्दुलिलाह सूमई शहरे जीलान के मश्हूर मशाएख़ व रऊसा में शामिल थे

बड़े आबिद व ज़ाहिद, मुस्तजाबुद दअवात, क़ाएमुल लैल व साएमुन नहार थे

ज़ईफ व नहीफ होने के बावजूद कसीरुन नवाफिल व दाएमुज़ जिक्र थे और इसी के साथ अजम के मशाएख़ से फुयूज़ व बरकात हासिल शुदा थे

आपकी करामतें बड़ी मश्हूर हैं

हज़रते अब्दुल्लाह क़ुज़वेनी का बयान है कि एक बार हमारे कुछ अहबाब तिजारत की ग़र्ज़ से सरक़ंद गए, जब वहाँ एक सहरा में पहुंचे तो कई हथियार सवारों ने आकर क़ाफिले को घेर लिया। सारे लोगों ने बयक ज़बान कहा या अब्दल्लाह सूमई! अल मदद

इधर पुकारा और उधर देखा कि हज़रते अब्दुल्लाह सूमई सबके साथ खड़े हैं और डाकुओं से फरमा रहे हैं दूर हो जाओ इस क़ाफिले से आपकी आवाज़ की हैबत से सारे डाकू भाग निकले और दोबारा वापस ना आए। 

इधर मारे ख़ुशी के सारे लोग यह ही ना देख सके कि हज़रते अब्दुल्लाह सूमई किधर गए। 

जब बड़ी जुस्तजू के बाद भी ना मिले तो लोग थक हार कर बैठ गए और कहा वापस जीलान पहुंच कर हज़रत से इस मामले में बात करेंगे

जब यह क़ाफिला जीलान में दाखिल हुआ तो हर मिलने वाले शख़्स को उस वाकिये की ख़बर दी और हर सुनने वाला यही जवाब देता कि तुम जिस वक़्त हज़रते अब्दुल्लाह सूमई का वहाँ रहना बता रहे हो हज़रत तो उस वक़्त हम सब लोगों के साथ जीलन में थे जहाँ सरकारे ग़ौसे पाक के नाना जान बुलंद पाया बुज़ुर्ग हैं वहीं आपके वालिदैन और फूफी जान भी अपने वक़्त के ज़बरजस्त वली व वलीया गुज़रे हैं

आपके वालिदे करीम के सेब खाने और उसका कफ्फारा अदा करने का वाकिया किसने नहीं सुना

आपने एक सेब जो नहर से बहता हुआ आया था खा लिया और सोचा कि ना जाने किसका था कि मैंने बग़ैर इजाज़त खा लिया

यह सोच कर उसी तरफ चल पड़े जिस तरफ से सेब आया था तो देखा एक सेब का पेड़ दरिया की जानिब झुका है (सोचा सेब इसी से गिरा होगा)

जब बाग़ के मालिक के पास गए और सारा वाकिया बताया तो मालिक ने आपको 12 साल उस बाग़ की निगहबानी सौंप दी

यह मालिक हज़रते अब्दुल्लाह सूमई ही हैं कि निगाहे नाज़ से वह आपको सज़ा नहीं देना चाहते बल्कि परखना चाहते हैं

जब 12 साल की मुददत पूरी हो गई तो फरमाया तुमहारे कफ्फारे के लिये तुम्हें एक और काम कर,ना है वह यह कि मेरी एक बे दस्त व पा (माज़ूर) बेटी है जिससे तुम्हें निकाह करना होगा

आपके वालिद हज़रते अबू सालेह ने हाँ कर दी और बादे निकाह जब हुजरए ख़ास में दाखिल हुए तो सहीहुल अअज़ा लड़की को देख कर हैरत में पड़ गए और उलटे क़दम बाहर आ गए। 

हज़रते अब्दुल्लाह सूमई को से पूछा कि अंदर कौन है?

फरमाया मेरी बेटी और तुम्हारी ज़ौजा

अर्ज़ की हुज़ूर लेकिन आपने तो फरमाया था कि वह बे दस्त व पा है?

फरमाया कि उसके कोई क़दम आज तक खिलाफे शरअ नहीं उठे इसलिये माज़ूर कहा

उसके हाथ अपने रब के सिवा किसी के सामने नहीं फैले इसलिये माज़ूर कहा

उसने कभी किसी अजनबी को ना देखा ना सुना इसलिये माज़ूर कहा

हज़रते अबू सालेह ने उस नेक ख़ातून को अपना लिया और इसी पारसा बीबी के पाकीज़ा बतन से 60 साल की उम्र में जो बच्चा ज़माने के लिये आफताबे विलायत बन कर चमका उसी नूरानी शख्सियत को लोग ग़ौसे आज़म कहते हैं। 

इससे पहले जलसे का आगाज़ तिलावते कुरान पाक से हाफिज़ मोहम्मद तालिब ने किया हाफिज़ मोहम्मद मोनिस, मोहम्मद जुनैद, मोहम्मद रईस ने नात पाक पेश की जलसा सलातो सलाम व दुआ के साथ खत्म हुआ जलसे के बाद शीरनी तक़सीम हुई मेहमाने खुसूसी सीतापुर से आए प्रधान मोहम्मद रफीक़ रहे। इस मौके पर हाजी अब्दुल बाक़ी, सन्ना भाई, अनीस अन्सारी, वसीम क़ुरैशी,फिरोज कुरैशी, यामीन कुरैशी, ज़मीर खाँ, जियाउद्दीन अज़हरी आदि लोग मौजूद थे।

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