हज़रत मख्दूमे अशरफ की तरबियत हज़रते खिज्र ने फरमाई:हाफिज़ फ़ैसल जाफ़री

तन्ज़ीम बरेलवी उलमा-ए-अहले सुन्नत के ज़ेेरे एहतिमाम हुमायूं बाग मे उर्स मख्दूम सिमनानी व उर्स वारिसे पाक मनाया गया

कानपुर: तारिकुस सल्तनत हज़रते मख़्दूम अशरफ जहाँगीर सिमनानी रजि अल्लाहु अन्हु सरकारे इमामे हुसैन रजि अल्लाहु अन्हु की नस्ले पाक से हैं. आपकी पैदाइश 708 हिजरी को ईरान के शहर सिमनान में हुई. आपकी विलादत से पहले सिमनान के कई अज़ीम बुज़ुर्गों ने आपकी आमद की ख़ुशख़बरी सुनाई. आप एक एैसे घराने से तअल्लुक़ रखते थे जहाँ हुकमरानी पुश्तों से चली आ रही थी साथ ही आपके आबा अज्दाद दीने मुस्तफाई के भी बड़े पासदार थे. आपकी तरबीयत हज़रते खिज़्र अलैहिस्सलाम ने फरमाई.

इन ख्यालात का इज़हार तन्ज़ीम बरेलवी उलमा-ए-अहले सुन्नत के ज़ेरे एहतिमाम हुमायूं बाग चमनगंज मे हुए उर्स मख्दूम अशरफ सिमनानी व उर्स वारिसे पाक मे तन्ज़ीम के सदर हाफिज़ व क़ारी सैयद मोहम्मद फैसल जाफरी ने किया उन्होंने आगे कहा कि आप 14 साल की छोटी सी उम्र में आपने तमाम उलूम व फुनून पर मुकम्मल महारत हासिल कर ली और फिर बातिनी फैज़ हासिल करने के लिये हिंदुस्तान तशरीफ लाए और यहाँ सूबए बंगाल में हज़रते शैख़ अलाउददीन रजि अल्लाहु अन्हु से शर्फे बैअत हासिल की
सोना तो आप पहले ही थे मुर्शिदे कामिल की अताओं ने आपको कुंदन बना दिया
वालिदे करीम के इंतिक़ाल के बाद लोगों की ख़्वाहिश से आप तख़्ते हुकूमत पर जल्वा फराज़ हुए और कुछ सालों बड़े ही अद्ल व इंसाफ के साथ हुकूमत फरमाई लेकिन बाद में आपने हुकूमत को छोड़ कर फक़ीरी इख्तियार कर ली और सारी जिन्दगी फक़ीरी में ही बसर फरमाई
दीने पाक की खिदमत व इशाअत आपका अस्ल शेवा था, आप तब्लीग़े इस्लाम के लिये बड़ी दूर दूर का सफर फरमाते
कितने ही गुनहगाह आपकी तब्लीग़ से मुतासिर होकर ताएब हुए जहाँ अल्लाह तआला ने आपको इन कमालात से नवाज़ा था वहीं आपका करामतों में भी कोई सानी नहीं था
आपसे एक नहीं हज़ारों करामतें वजूद में आईं और इन्हीं करामतों को देख कर लाखों ग़ैर मुस्लिम मज़हबे इस्लाम में दाखिल हुए
एक बार कुछ शरारती लोगों ने आपका इम्तिहान लेना चाहा और उसके लिये उन्होंने यह तरकीब निकाली कि अपने ही बीच से एक शख़्स को तय्यार किया कि वह मरने का नाटक करे और हम उसके जनाज़े को मख़्दूमे अशरफ के पास ले जाकर जनाज़ा पढ़ाने को कहेंगे, जैसे ही वह पहली तकबीर कह कर नियत बाँधें तुम खड़े हो जाना ताकि हम सब मिल कर उनका मज़ाक़ उड़ाएँ
यह बदमाश पूरी प्लानिंग के साथ जब मख़्दूमे अशरफ के पास पहुंचे तो पहले आपने जनाज़ा पढ़ाने से इंकार कर दिया लेकिन जब उन लोगों ने इसरार किया तो आप जनाज़ा पढ़ाने के लिये तय्यार हो गए और तकबीर कह कर नियत बाँध ली
वह लोग अपने आदमी के उठने का इंतिज़ार करने लगे लेकिन वह ना अब उठा ना तब
जब जाकर देखा तो वह वाक़ई मर चुका था
सब लोग आपके पास आकर रोने लगे और अपनी सारी हरकतों को बयान करके बहुत शर्मिंदा हुए
आपने सबको माफ फरमा दिया और जब निगाहे नाज़ उस मरे हुए शख़्स की तरफ उठाई तो हुक्मे रब्बी से वह जिंदा हो गया
आपका विसाल 28 मोहर्रम 808 हिजरी किछौछा शरीफ (अम्बेडकर नगर) में हुआ और यहीं आपका मज़ारे मुबारक है जहाँ अल्लाह तआला आपकी बरकतों से रोगियों को शिफा और दुखियों को सुख अता फरमाता है
हाफिज फैसल जाफरी ने सरकार वारिसे पाक रजि अल्लाहु अन्हु का जिक्र करते हुए कहा कि आपको ज़माना आलम पनाह के लक़ब से जानता है अल्लाह पाक ने आपको बड़ा मर्तबा बख्शा बड़ी शाने अता की यही वजह है कि आज भी ज़माना आपके दरबार से दामने मुराद को पा रहा है चाहे वह जिस मज़हब का हो आपका विसाल एक सफर 1323 हिजरी मुताबिक 6 अप्रैल 1905 को हुआ और मज़ार शरीफ यूपी के बाराबंकी जिला के देवा मे है इस मौक़े पर फातिहा ख्वानी हुई और दुआ की गई फिर शीरनी तकसीम हुई हाफिज इरफान रज़ा क़ादरी,मोहम्मद सलमान .वारसी, हाजी हस्सान अज़हरी, महबूब गुफरान अज़हरी, मोहम्मद नदीम, मोहम्मद नसीर आदि लोग मौजूद थे!


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