बेजुबान ने दिखाई ममता, जानी दुश्मन के बच्चों की बचाई जिंदगी
कानपुर । जाति धर्म व अपने-अपने स्वार्थ में जहां लोग परेशान रहते हैं तो वहीं एक बेजुबान ने ममता की ऐसी मिशाल पेश किया कि ग्रामीण हैरान हो गये। जी हां हम बात कर रहें है एक ऐसी कुतिया की जो अपने बच्चों के साथ भूख से तड़प रहे जानी दुश्मन बकरी के बच्चों को दूध पिला उनकी जिंदगी इस कड़ाके की ठंड में बचा रही है।

कुतिया के दूध से पल रहे बकरी के बच्चे- कहते हैं दुनिया मां ऐसी होती है जो अपने बच्चे के लिए कुछ भी कर गुजरती है। खुद भूखे पेट सोती है, पर अपने कलेजे के टुकड़े को वह भूखा नहीं सोने देती। इंसानों के साथ-साथ मां शब्द बेजुबानों के लिए खास है। ऐसी ही एक मां घाटमपुर तहसील के भीतरगाव क्षेत्र के तिवारीपुर गांव मे चर्चा का विषय बनी हुयी है। जिसकी ममता व प्यार उसके बच्चे के साथ ही ऐसे दो बच्चों को भी मिलता है जो अपनी मां के बीमार हो जाने के चलते भूख से बिलख रहे थे। ये मां कोई इंसान नहीं बल्कि एक घर की पालतू कुतिया है।
तिवारीपुर गांव निवासी किसान शिवबरन सिंह यादव के घर पर बकरी ने दो बच्चों को जन्म दिया था। ठंड के चलते बकरी बीमार पड़ गई और उसने अपने बच्चों को दूध पिलाना बंद कर दिया। किसान बकरी के बच्चों को बोतल के जरिए धूप पिलाने की कोशिश करता पर वह पीने को तैयार नहीं होते। शिवबरन ने बताया कि बड़े भाई के यहां रजनी नाम की कुतिया पली है और उसने भी तीन पिल्लों को जन्म दिया है। बताते हैं, पांच दिन पहले कुतिया बकरी के बच्चों के पास खड़ी हो गई और उन्हें दुलारने लगी। बकरी के बच्चे भी बिना डरे उसका दूध पीने लगे।
तीन बार आकर पिलाती है दूध - शिवबरन बताते हैं कि कुतिया सुबह, दोपहर और शाम को बरामदे में आकर खड़ी हो जाती है और बकरी के बच्चे उसे देख कर उछल कूद कर पास पहुंच जाते हैं। कुतिया बकरी के बच्चों को प्यार से दुलारती है और फिर दोनों दूध पीने लगते हैं। बकरी के बच्चों का पेट भरने के बाद कुतिया अपने पिल्लों को दूध पिलाती है। शिवबरन ने बताया कि पिछले पांच दिन कुतिया के दूध से बकरी के बच्चों में जान आ गई है और वह अब उसे देखते ही बाहर निकल आते हैं और उछल-कूद करते हैं। वहीं गांववालों का कहना हैं कि उन्होंने ऐसा नजारा इससे पहले कभी नहीं देखा था। अब यह कुतिया रोजाना उसे दूध पिलाती है। पूरे क्षेत्र में एक कुतिया द्वारा बकरी के बच्चे को दूध पिलाना चर्चा का विषय बना हुआ है। जो सुनता है उसके पैर शिवबरन यादव के घर की तरफ खुद-ब-खुद बढ़ जाते है।
पालक की पत्नी का कहना - शिवबरन की पत्नी आशा यादव कहती हैं कि इंसान जाति, धर्म, ऊंच-नींच पर बटा है, लेकिन बेजुबानों में आज भी मानवता दिखती है। आशा ने बताया कि बकरी के बीमार हो जाने से बच्चे भी भूख से बीमार पड़ गए। डॉक्टरों को दिखाया तो उन्होंने बोतल के जरिए दूध पिलाने को कहा। लेकिन वह बोतल पर मुंह लगाने को तैयार नहीं थे। हमें एहसास हो गया था कि अब बकरी के बच्चे जिंदा नहीं बचेंगे। लेकिन चाचा की कुतिया ने उन्हें जीवनदान दिया। आशा कहती हैं कि कुत्ते और बकरी का आपस में बैर होता है, पर इस मां ने दुश्मनी को आगे नहीं होने दिया और अपना मातृधर्म निभाया। बकरी के बच्चे उसे अपनी मां की तरह ही प्यार करते हैं तो वो भी उन्हें पिल्लों की तरह दुलारती है।
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