जब तक दुनिया में कुरान और अहले बैत बाकी हैं, इस्लाम के वजूद को कोई भी मिटा नहीं सकता - मौलाना गुलाम रसूल बलियावी
बर्मा में नरसंहार पर संयुक्त राष्ट्र इस पर दखल देकर वहां के मजलूमों को इंसाफ दिलायें
अंजुमन निस्बते ताजुश्शरिया या के बैनर तले बेकनगंज में शाने अहलेबैत मुस्तफा कांफ्रेंस का आयोजन

कानपुर 17 सितंबर।
अंजुमन निस्बते ताजुश्शरिया  के जेरे ऐहतेमाम बेकनगंज मछली तिराहा पर शाने अहलेबैत मुस्तफा कांफ्रेंस आयोजित हुई। जिसमें काफी तादाद में गुलामाने मुस्तफा ने शिरकत किया। जलसे को खिताब फरमाने के लिए पटना (बिहार) से आये पूर्व सांसद व एमएलसी हजरत अल्लामा मौलाना गुलाम रसूल बलियावी सदर कौमी इत्तेहाद मोर्चा ने खिताब फरमाते हुए कहा कि हिदायत के लिए कुरान और अहलेबैत हैं। अहले बैत को समझना हो तो कुरान से समझें और कुरान को समझना हो तो अहले बैत से समझें और इन दोनों को जिसने समझ कर पूरी दुनिया को समझाया, उस शख्सियत को आला हजरत इमाम अहमद रजा खां कहते हैं। उन्होंने आला हजरत का एक शेर पढ़ा (तेरी नस्ले पाक में है बच्चा बच्चा नूर का, तू है एैने नूर तेरा सब घराना नूर का) वैवाहिक विवादों व दौलत के गुरूर का खात्मा अगर मकसूद है और अगर औलादों को नेक और सालेह बनाने का अगर सही जज्बह है तो मुसलमान अपनी बेटियों को तारीखे सैयदा फातिमा पढ़ा दें। बिना किसी वसाइल (संसाधन) के जंग जीतने का इरादा हो तो अपनी नस्लों को तारीखे कर्बला पढ़ा दो। इसारों इखलास के साथ फाका में बादषाहत का न मिटने वाला अगर कोई नक्षो निशान देखना हो तो सैयदना इमाम हुसैन रजि. की सीरते करीमाना का मुतालआ (अध्ययन) कर लो। जान लो जब तक दुनिया में कुरान और अहलेबैत बाकी हैं इस्लाम के वजूद (अस्तित्व) को कोई मिटा नहीं सकता। उन्होंने बर्मा को लेकर बयान में कहा कि भारत की विदेश नीति को रोजे अव्वल से ही मजलूमों की हिमायत (समर्थन) में रही। दुनिया में कहीं भी कुदरती आफत, मरने वालों के प्रति संसद के दोनों सदनों से लेकर सड़क तक हर भारतीय अपनी हमदर्दी का इजहार का ऐलान करता है और यह हमारे देश की विश्वस्तर पर मुनफरद पहचान रही। पड़ोस के नेपाल और देश के अधिकांश क्षेत्रों में जो हाल ही में भूकंप आया था तो एक बड़ी राशि नेपाल के बुनियादी ढांचे को खड़ा करने के लिए भारत ने दिया। ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं। बांग्लादेश में पिछले पांच साल पहले एक सैलाब आया आया था वहां भी ने इंसानी हमदर्दी का मुजाहरा करते हुये इमदाद भेजी थी। बरमा भी इंसानों का कत्ले आम हो रहा है। हैरत इस बात की है कि सेना और वहाँ के मजहबी दहशतगर्द दोनों एक हो चुके हैं और यह फर्क करना मुश्किल हो रहा है कि सेना कौन है और दहशतगर्द कौन है? बालाये सितम ये है कि आलमी सतह पर हुकूके इंसानी (मानवाधिकार) को इदारा (संस्था) और बड़ी अदालत है वह संयुक्त राष्ट्र है और पूरी दुनिया के देश इसके सदस्य हैं। यदि किसी देश का नागरिक धार्मिक, व्यक्तिगत, जातीय शोषण का शिकार हो या जुल्म व सितम से दो चार हो तो संयुक्त राष्ट्र अपने पावर का उपयोग करते हुए हस्तक्षेप करती है, लेकिन फिलिस्तीन में बरसों से नरसंहार का सिलसिला जारी है। बरमा में इलक-ए-वार नस्लकुषी का दौर शुरू है और संयुक्त राष्ट्र को पूरी दुनिया की इंसानियत चीख चीख कर आवाज दे रही है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र सुन क्यों नहीं रहा? हमारे देश की विदेश नीति उस समय से जालिमों के हामी हो गई जब भारत के पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने इसराइल से सिफारिती ताल्लुक कायम किए। मौजूदा प्रधान मंत्री ने विदेशों के दौरे तो बहुत किये लेकिन अच्छे संबंध स्थापित करने में सफल नहीं हुए। उन्होंने आगे कहा कि बंगला जबान बोलने की बुनियाद पर बर्मा या रोहिंगया का नागरिक नहीं माना जा सकता है। इस समय जो यह कहकर हायतौबा मचाने की कोशिश हो रही है कि बर्मा के बहुत से लोग भारत में शरणार्थी हैं। हम केंद्र सरकार से जानना चाहते हैं कि तिब्बत के कितने लोग मुकीम हैं और उन्हें भारत सरकार से क्या क्या सुविधायें दी गई हैं और अगर दी गई हैं तो किस आधार पर? मानवीय आधार पर या धर्म के आधार पर। इसका खुलासा भी देश की जनता के सामने आना चाहिए। 
जलसे को मौलाना मोहम्मद शहाबुद्दीन रजवी ने भी संबोधित किया। जलसे की सरपरस्ती सुन्नी जमीअत उलेमा उत्तर प्रदेश के सदर हजरत अल्लामा मुफ्ती मोहम्मद इलियास खां नूरी, सदारत सैयद मोहम्मद अमीन मियां काजमी और निजामत वारिस रजा चिश्ती ने की। इससे पहले जलसे का आगाज तिलावते कुरान पाक से कारी अमीर हमजा नूरी ने किया। जनाब साजिद रजा सुल्तानपुरी, कलीम दानिश, जैनुल आबेदीन और मोहम्मद शोएब अजहरी ने बारगाहे रिसालत में नात पाक का नजराना पेश किया। जलसा सलातो सलाम और दुआ के साथ खत्म हुआ।
तंजीम बरेलवी उलेमाए अहले सुन्नत के सदर व जलसे के मीडिया इंचार्ज हाफिज व कारी सैयद मोहम्मद फैसल जाफरी ने आए हुए मेहमानों का शुक्रिया अदा किया। इस मौके पर मौलाना मोहम्मद उमर कादरी, मुफ्ती शब्बीर अहमद रजवी, कारी तैयब अली कादरी, मौलाना मुशाहिद रजा कादरी, मौलाना नौशाद रजा अजहरी, हाफिज मोहम्मद तारिक अजहरी मौलाना अख्तर रजा खां, मौलाना आफताब आलम अजहरी, कारी अकील अहमद अजहरी, हाफिज मोहम्मद आमिर अजहरी, मोहम्मद शादाब रजा, मोहम्मद दानिश, मोहम्मद सरताज, मोहम्मद इरशाद, मोहम्मद आमिर, मोहम्मद शानू, मोहम्मद सुहैल, मोहम्मद रईस खां, जियाउद्दीन अजहरी आदि लोग मौजूद थे।

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