कानपुर। अल्लाह के मुकद्दस वली हुज़ूर मुजाहिदे मिल्लत हज़रत अल्लामा हबीबुर्रहमान अलैहिर्रहमा (जिनकी मज़ार शरीफ उड़ीसा के धामनगर मे है) के उर्स मुबारक पर खिराजे अक़ीदत पेश करने के लिए तन्ज़ीम बरेलवी उलमा-ए-अहले सुन्नत के ज़ेरे एहतिमाम चमनगंज में उर्स मुजाहिदे मिल्लत मनाया गया। तन्ज़ीम के सदर हाफिज़ व क़ारी सैयद मोहम्मद फैसल जाफरी ने कहा कि हुज़ूर मुजाहिदे मिल्लत अलैहिर्रहमा की विलादत 8 मोहर्रम (1322) हिजरी को उड़ीसा में हुई, आप हुज़ूर अलैहिस्सलाम के चचा हज़रते अब्बास रजि अल्लाहु अन्हु की नस्ले पाक से हैं, इसीलिये आपको अब्बासी कहा जाता है, आपका तारीख़ी नाम हबीबुर्रहमान है।
आपके वालिद की दिली हसरत थी कि आपको बेहतरीन आलिम बनाएँ मगर इस हसरत की तक्मील के बग़ैर ही ख़ुदा के प्यारे हो गए। लोगों ने आपको स्कूल में भेज दिया लेकिन कुछ दिन पढ़ कर आपने स्कूल छोड़ दिया।
1341 हिजरी में मदरसा सुब्हानिया इलाहाबाद में दाखिला लिया, कुछ साल वहाँ इल्म हासिल करके जामिया उस्मानिया अजमेर शरीफ में आ गए और यहाँ से फराग़त के बाद हज़रते अल्लामा नईमुद्दीन मुरादाबादी की खिदमत में हाजिर होकर फैज़ हासिल किया। तालीम का सिलसिला पूरा करके इलाहाबाद आ गए और पढ़ाने के साथ तब्लीग़ का काम शुरू कर दिया जिन हज़रात से आपको खिलाफत अता हुई वह यह हैं-
हज़रते अली हुसैन कछौछवी
हज़रते हामिद रज़ा बरेलवी
हुज़ूर मुफ्तिये आज़मे हिन्द, जब्कि आप मुरीद हुज़ूर अली मियाँ से थे आपने मुल्क भर में दीनी इदारे क़ाएम करने शुरू किये और इस सिलसिले में आपने कामयाबी भी पाई, क्यूँकि दौलते इल्म के साथ अल्लाह ने आपको दौलते दुनिया से भी नवाज़ा था, लेकिन आपने उन पैसों को अपनी ज़ात पर ना ख़र्च करके सिर्फ दीने पाक पर लगाया और ख़ुद को फक़ीराना साँचे में ढ़ाल लिया।
आपने फिर्क़हाए बातिला से एक नहीं कई मुनाजिरे किये और मौला का आप पर एैसा ख़ुसूसी करम था कि एक भी मुनाजिरे में आपको शिकस्त का सामना ना हुआ बल्कि जिस मिन्बर पर रौनक़ बार हुए कामयाबियों ने आकर आपके क़दमों को बोसा दिया आपके इसातिज़ा में यूँ तो कई हज़रात हैं लेकिन उनमें हुज़ूर सदरुश्शरीअह और हुज़ूर सदरुल अफाजिल का नाम नुमायाँ है। अल्लामा अब्दुल हलीम अशरफी नागपुरी फरमाते हैं कि मेरे उस्ताज़ हज़रते अल्लामा अब्दुर रशीद अशरफी सरकार मुजाहिदे मिल्लत का वाकिया बयान करने लगे कि एक बार सरकार मुजाहिदे मिल्लत जामिया अरबिया सुल्तानपुर तशरीफ लाए और एक कमरा में क़याम (रुकना) फरमाया, रात का आखिरी हिस्सा था। मैं अपनी ज़रूरत के लिये उठा और हुज़ूर मुजाहिदे मिल्लत के कमरा के क़रीब से गुज़रा तो कुछ आवाज़ें सुनाई दीं, दरवाज़े के सुराख़ से अन्दर झाँक कर देखा तो हैरत की इन्तिहा ना रही, सरकार मुजाहिदे मिल्लत के बदन का हर हिस्सा अलग अलग है और हर हिस्से से तस्बीह की आवाज़ आ रही हैं।
हुज़ूर मुजाहिदे मिल्लत का विसाल 6 जमादिल अव्वल 1401 हिजरी को मुम्बई के इस्माईल होटल में हुआ, वहाँ से आपको जहाज़ से कलकत्ता लाया गया और कलकत्ता से उड़ीसा, तीसरे दिन शाम 5 बजे आपको धाम नगर में सुपुर्दे ख़ाक किया गया।
आम लोगों के जनाज़े में अगर कुछ ताख़ीर हो जाए तो बदन से बदबू आने लगती है लेकिन सरकार मुजाहिदे मिल्लत का जनाज़ा कई दिन दफ्न ना होने के बा वजूद वैसा ही रहा, बल्कि बयान करने वालों ने कहा है कि जब आपको मुम्बई से कलकत्ता लाया गया और ताबूत खोला गया तो आपकी पेशानी पर पसीने के क़तरे थे। जिसे हाजिरीन ने देखा और कहा यक़ीनन यह हुज़ूर मुजाहिदे मिल्लत की करामत है।
इस मौक़े पर फातिहा ख्वानी हुई और दुआ की गई फिर शीरनी तक़सीम हुई। कारी आदिल अज़हरी, हाफिज इरफान कादरी, हाफिज वाहिद अली रजवी, मौलाना मुबारक अली फैज़ी,हयात ज़फर हाशमी, मोहम्मद इलियास गोपी, ज़मीर खान, मोहम्मद मोईन जाफरी आदि लोग मौजूद थे।
No comments:
Post a Comment