तन्ज़ीम बरेलवी उलमा-ए-अहले सुन्नत के ज़ेरे एहतिमाम चमनगंज मे उर्स महबूबे इलाही मनाया गया

कानपुर :अल्लाह के मुक़द्दस वली हज़रत ख्वाजा सैयद निज़ामुददीन औलिया महबूबे इलाही रजि अल्लाहो अन्हु के उर्स मुबारक पर खिराजे अकीदत पेश करने के लिए तन्ज़ीम बरेलवी उलमा-ए-अहले सुन्नत के ज़ेरे एहतिमाम चमनगंज मे उर्स महबूबे इलाही मनाया गया इस मौक़े पर तन्ज़ीम के सदर हाफिज़ व क़ारी सैयद मोहम्मद फ़ैसल जाफरी ने उनकी जिन्दगी पर रोशनी डालते हुए कहा कि हज़रते ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया महबूबे इलाही रजि अल्लाहु अंहु की विलादत (पैदाईश) बदायूँ शरीफ में 27 सफर 636 हिजरी में हुई, वालिदे माजिद का नाम अहमद बिन अली था, आपका ख़ानदान बुख़ारा से हिजरत करके यहाँ आया था, जब उम्र शरीफ 5 साल हुई तो वालिदे ग्रामी का साया सर से उठ गया, फिर वालिदा करीमा ने आपकी मुकम्मल परवरिश फरमाई, आपने बहुत छोटी सी उम्र में बहुत से उलूम व फुनून पर दस्तरस हासिल कर ली, 16 साल की उम्र में दिल्ली आ गए, और आखिर उम्र तक यहीं तब्लीग़ का काम करते रहे, आपके ख़ुल्फा में हज़रत ख़्वाजा बुरहानुद्दीन ग़रीब, हज़रत शैख़ नसीरुद्दीन महमूद चिराग़ देहलवी, हज़रत मौलाना शमसुद्दीन यहया, हज़रत  शैख़ क़ुतबुद्दीन मुनव्वर हाँस्वी, हज़रत शैख़ हुसामुद्दीन मुल्तानी, हज़रत मौलाना फख़रुद्दीन ज़रादी,हज़रत मौलाना अलाउद्दीन और हज़रत मौलाना शहाबुद्दीन रजि अल्लाहु अन्हुमा नामी ग्रामी मशाएख़ गुज़रे हैं

आप बड़े ही आबिद व ज़ाहिद, बा जमाल व बा कमाल, हुस्ने अख़्लाक़ का मुजस्समा, औसाफे जलीला का सरापा होने के साथ बा करामत वली थे

एक दिन सख़्त बारिश हो रही थी, अंधेरी रात थी, आपने अपने एक ख़ादिम को बुला कर फरमाया कि जमुना के उस पार एक क़ुतुब बैठे हैं जाओ उन्हें खीर दे आओ

ख़ादिम ने अर्ज़ की हुज़ूर! जमुना जोश पर है, कश्ती भी नहीं है, मैं कैसे जाऊँ?

फरमाया जाओ और जमुना से कहना मुझे उसने भेजा है जो कभी अपनी बीवी के पास नहीं गया, जमुना रास्ता दे देगा

ख़ादिम हैरत में पड़ गया कि आप तो साहिबे औलाद हैं तब एैसा क्यूँ बोल रहे हैं?

मगर अदब में कुछ ना कहा और चल दिया, दरिया से वही कहा तो उसने रास्ता दे दिया

उस पार जाकर उस क़ुतुब को खीर खिला कर जब वापसी का इरादा किया तो उस क़ुतुब ने फरमाया कि अगर दरिया भरा हो तो उससे कह देना मैं उसके पास से आ रहा हूँ जिसने कभी कुछ नहीं खाया पिया

ख़ादिम फिर हैरत में पड़ गया कि अभी मैंने ही खिलाया है फिर भी यह एैसी बातें कर रहे हैं

ख़ैर दरिया पर आकर वही कहा तो दरिया ने रास्ता दे दिया

अब ख़ादिम से सब्र ना हुआ अपने मुर्शिद महबूबे इलाही से पूछा हज़ूर! जो आपने फरमाया और जो उन्होने फरमाया वह ब ज़ाहिर सच नहीं लगता लिहाज़ा इसकी वज़ाहत फरमाएँ

तो आपने फरमाया कि यह सच कि ना मैं कभी अपनी बीवी के पास (अपने नफ्स के लिये) गया और ना ही उस क़ुतुब ने कभी कुछ खाया पिया( सिर्फ पेट भरने के लिये) हमारा हर काम सिर्फ अपने मौला की रज़ा के लिये होता है

आपका विसाल 18 रबीउल आखिर 725 हिजरी में नई दिल्ली में हुआ, और वहीं मज़ारे मुबारक है जहॉ बड़ी तादाद मे अक़ीदतमंद हाजिर होते है हज़रते महबूबे इलाही की शान यह है कि अगर आपके गुस्ल का पानी मराज़ो के जिस्म पर पड़ जाए तो उसे शिफा मिल जाए और आज भी आपके मज़ार के गुस्ल का पानी जो भी शिफा की नियत से इस्तेमाल करे तो उसे शिफा मिल जाती है इस मौक़े पर महबूबे इलाही का क़ुल शरीफ हुआ और दुआ की गई फिर शीरनी तक़सीम हुई इस मौके पर हाफिज़ इरफान रज़ा क़ादरी, हाजी हस्सान अज़हरी,हयात ज़फर हाशमी, मोहम्मद इलियास गोपी, शादाब रज़ा, मोहम्मद जाफरी आदि लोग मौजूद थे!

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