हज़रते इब्राहीम ने हज़रते इस्माईल को अल्लाह की रज़ा के लिए क़ुर्बान किया - मौलाना हस्सान क़ादरी
तन्जीम बरेलवी उलमाए अहले सुन्नत के जेरे एहतिमाम दर्से पैगामे मुस्तफा अजीतगंज में आयोजित

कानपुर 27 अगस्त।  ईदुल अज्हा (कुर्बानी की ईद) मुसलमान हजरत इब्राहीम व हजरत इस्माईल की यादगार के तौर पर मनाते हैं क्यूँकि आज से कई सौ साल पहले हजरत इब्राहीम ने रजाए मौला की खातिर अपने बेटे हजरत इस्माईल को कुर्बान कर दिया था, अताअते रब और तस्लीमो रजा की वो मिसाल काएम की थी कि दुनिया आज भी हैरान है, मुसलमान 10-11-और 12 जिल्हिज्जा को उसी वाकिएै खलीली को याद को ताजा करते हैं, कुर्बानियाँ करते हैं, अपने रब की बारगाह में सरे तस्लीम खत्म करते हैं और उसी ईसारो वफा का जज्बा अपने दिल में पैदा करते हैं, मुसलमानों की यह ईद शुक्राने की ईद है, तक्बीरो तहलील की ईद है और खुदा की राह में जानो माल की कुर्बानी पेश करने की ईद है। इस मुबारक ईद में मुसलमान अपने रब से उसकी मर्जी के मुताबिक जिंदगी गुजारने का अहद करते हैं, ईदुलअज्हा को सिर्फ गोश्त खाने का त्योहार समझना गलत है, सुन्नते इब्राहीमी को जिंदा रखना, अताअते मौला और रजाए मौला का भूला हुआ सबक याद करना ही दरअस्ल ईदुलअज्हा की हकीकत है। 
यह बात तन्जीम बरेलवी उलमाए अहले सुन्नत के जेरे एहतिमाम अजीतगंज मे साप्ताहिक जलसा दर्से पैगामे मुस्तफा मे तन्जीम के मीडिया इंचार्ज मौलाना मोहम्मद हस्सान कादरी ने जलसे मे बताई उन्होने आगे कहा कि कुरआने पाक में रब तआला ने इरशाद फरमाया जिसका तर्जुमा है  कि अपने रब के लिये नमाज पढ़ो और कुर्बानी करो। कुर्बानी में बहुत सी हिक्मतें पोशीदा हैं और अहादीस में इसके बेशुमार फजाएल बयान किये गए हैं। इमामे तिर्मिजी ने हजरत आएशा सिद्दीका रजि अल्लाहु अंहा से रिवायत की कि रसूलुल्लाह अलैहिस्सलाम ने इरशाद फरमाया, ईदुलअज्हा के दिन इब्ने आदम का कोई अमल अल्लाह तआला के नजदीक कुर्बानी से ज्यादा पसंदीदा नहीं है, कयामत के दिन कुर्बानी का जानवर अपने सींगों, बालों और खुरों के साथ आएगा, कुर्बानी का खून जमीन पर गिरने से पहले अल्लाह के नजदीक मकबूल हो जाता है, लिहाजा तुम खूब अच्छी तरह कुर्बानी करो...
कुर्बानी के जानवरों को एैब से पाक होना चाहिये, अगर थोड़ा भी एैब है तो कुरबानी तो हो जाएगी लेकिन खिलाफे सुन्नत और मकरूह होगी, और अगर ज्यादा एैब है तो कुर्बानी होगी ही नहीं कुर्बानी का जानवर जितना अच्छा हो उतना ही बेहतर है मगर कुर्बानी करने वाले की नियत हर्गिज सिर्फ गोश्त हासिल करने की ना हो, अगर एैसी नियत हुई तो कुर्बानी होगी ही नहीं, और जिस जानवर के दाँत ना हों या जिसके थन कटे हों या खुश्क हों, जिसकी नाक कटी हो, जिसमें नर और मादा दोनों की अलामतें पाई जाएँ, और जो सिर्फ गिलाजत (गंदा) खाता हो, इन सबकी कुर्बानी नाजाएज है
कुर्बानी के गोश्त के 3 हिस्से किये जाएँ, एक हिस्सा गरीब व मिस्कीन के लिये, एक हिस्सा दोस्त व अहबाब के लिये, और एक हिस्सा घर वालों के लिये, अगर अहलो अयाल, बाल बच्चे ज्यादा हों तो सारा गोश्त घर पर के लिये भी रखने में कोई हर्ज नहीं है, कुर्बानी का चमड़ा, उसकी झोल, रस्सी और गले का हार वगैरह इन तमामी चीजों को सदका करदें, कुर्बानी के चमड़े को अपने काम में लाना भी जाएज है, जैसे जा नमाज मशकीजा, दस्तर ख्वान और डोल वगैरह बना लेना
हाँ चमड़ा बेचकर उसकी रकम अपने खर्च में लाना नाजाएज है, अगर बेचना ही है तो बेचकर उसकी रक्म को सदका करदें, या मस्जिद में दे दें,  इसी तरह कब्रिस्तान और मदरसों की तामीर में भी उसकी रक्म लगाना कारे खैर है आला हजरत फाजिले बरेलवी फरमाते हैं- और सबसे बेहतर यही है कि चमड़ा मदारिसे अहले सुन्नत में दे देना ही सबसे ज्यादा सवाब का काम है। 
जलसे की सदारत तन्जीम के सदर हाफिज व कारी सय्यद मोहम्मद फैसल जाफरी और निजामत कारी कलीमुल्लाह कादरी ने की इससे पहले जलसे का आगाज तिलावते कुरान पाक से हाफिज सिकन्दर अहमद अजहरी ने किया जनाब वसीमुल्लाह अजहरी और हाफिज सिकन्दर ने नात पाक पेश की जलसा सलातो सलाम व दुआ के साथ खत्म हुआ जलसे के संयोजक मोहम्मद सलीम व कमालुददीन ने आए हुए मेहमानो का शुक्रिया अदा किया इस मौके पर हाजी शमीमुल्लाह चिश्ती,अतीकुर्रहमान,मोहम्मद रिजवान,अनवार भाई आदि लोग मौजूद थे.

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