तन्ज़ीम बरेलवी उलमा-ए-अहले सुन्नत के ज़ेरे एहतिमाम बाबूपुरवा मे उर्स साबिर-ए- पाक मनाया गया


कानपुर:अल्लाह के मुक़द्दस वली हज़रते मख्दूम अलाउद्दीन अली अहमद साबिर पिया कलयरी अलैहिर्रमा के उर्स मुबारक पर खिराजे अक़ीदत पेश करने के लिए तन्ज़ीम बरेलवी उलमा-ए-अहले सुन्नत के ज़ेरे एहतिमाम बाबूपुरवा नई जामा मस्जिद के पास मे उर्स साबिर पिया मनाया गया जिसकी सदारत तन्ज़ीम के सदर हाफिज़ व क़ारी सैयद मोहम्मद फ़ैसल जाफ़री ने की तन्ज़ीम के मीडिया इंचार्ज मौलाना मोहम्मद हस्सान क़ादरी ने खिताब फरमाते हुए कहा कि  जब अबू लहब मर गया तो उसके घर के कुछ लोगों ने उसे ख़्वाब में बुरे हाल में देखा और पूछा तुमहें क्या मिला?

बोला तुमसे जुदा होकर मुझे कोई ख़ैर नसीब ना हुई फिर अपने अंगूठे के नीचे मौजूद सूराख़ की तरफ इशारा करते बोला कि रब का यह करम हुआ कि इस अंगूठे से मुझे पीर से दिन पानी पीने को मिलता है क्यूँकि मोहम्मद की विलादत की ख़ुशी में इसी अंगूठे के ज़रिये मैंने अपनी बाँदी को आज़ाद किया थ
इस रवायत के तहत हज़रते शैख़ अब्दुल हक़ देहलवी फरमाते हैं कि इस वाकिया में मीलाद मनाने वालों के लिये बड़ी दलील है जो ताजदारे रिसालत के नाम पर ख़ुशियाँ मनाते और उनके नाम पर माल ख़र्च करते हैं
मीलादे रसूल की ख़ुशी मनाने पर जब अबू लहब जैसे सख़्त ख़बीस को अल्लाह इनाम दे सकता है तो हम सच्चे ग़ुलामों को अल्लाह कैसे फरामोश फरमाएगा
लेकिन महफिले मीलाद में इतना ख़याल ज़रूर रहे कि यह महफिल गाने बाजे और हर तरह की हराम बातों से पाक हो
मौलाना ने आगे कहा कि सिलसिलए चिश्तिया के दरख़्शाँ व रौशन सितारे हज़रते मख़्दूम अली अहमद उर्फ साबिर पिया रजि अल्लाहु अन्हु का शुमार सिलसिलए चिश्तिया के नामवार औलिया हज़रात में होता है
आपके वालिदे माजिद हज़रते शाह अब्दुर रहीम भी अपने वक़्त के जलीलुल क़द्र वली हुए जब्कि आपकी वालिदा हज़रते बाबा फरीद गंजे शकर की हमशीरा (बहन) थीं
आपका तअल्लुक़ सादात घराने से था
वालिदे माजिद की तरफ से हसनी सय्यद हैं और वालिदा करीमा की तरफ से आपका सिलसिला हज़रते उमर फारूक़े आज़म से मिलता है
आप 19 रबीउल अव्वल 592 हिजरी को इस दुनिया में तशरीफ ला
वालिदा करीमा ने विलादत से पहले ख़्वाब में देखा कि हुज़ूर रहमते आलम अलैहिस्सलाम तशरीफ लाए और फरमाया इस बच्चे का नाम अहमद रखो और बादे विलादत हज़रते मौलाए काएनात की जियारत हुई तो आपने फरमाया इस बच्चे का नाम अली रखो लिहाज़ा दोनों ही निस्बतों को लेकर आपका नाम अली अहमद रखा गया
आपने इब्तिदाई तालीम अपने वालिद साहब से हासिल की और उनके विसाल के बाद अपने मामूँ जान हज़रते बाबा फरीद गंजे शकर की खिदमत में हाजिर हुए और फिक़्ह व तफ्सीर जैसे अज़ीम उलूम आपने यहाँ सीखे
तालीम हासिल करने के बाद आपने हज़रते बाबा फरीद के दस्ते मुबारक पर बैअत की और उनकी खिदमत में रह कर सुलूक की मंजिलें तय करने लगे
जब बाबा फरीद ने आपको विलायत के आला मक़ाम पर पहुंचा दिया तो आपको अपनी खिलाफत से भी मुज़य्यन फरमाया साथ ही कलियर की विलायत भी आपके सुपुर्द कर दी
मख़्दूम साबिर पिया बड़े ही जलाली बुज़ुर्ग थे, आप अकसर ख़ामोश रहते और इस्तग़राक़ी कैफियत का हाल यह होता कि कई कई रोज़ फाक़ों में गुज़र जाते लेकिन आप कभी ज़बान पर हर्फे शिकायत ना लाते
सालों साल तक कलियर के जंगलों में लोगों की नज़र से छुप कर इबादत व रियाज़त के मज़े लिये
आपके हालते जलाल का आलम बड़ा ही अलग था कि जब आप हालते जलाल में होते तो बड़े से बड़े वली भी आपके पास आने से कपकपाते
एक बार हज़रते बाबा फरीद तब्लीग़ के सिलसिले में शहर से बाहर तशरीफ ले गए और हज़रते साबिर उनके ही हुजरे में बैठ कर इबादत फरमाने लगे कि उसी वक़्त आप पर जलाल तारी हो गया, बाबा फरीद के साहबज़ादे हज़रते नईमुददीन जिनकी उम्र 3 साल थी खेलते हुए आए और झाँक कर हुजरे में देखने लगे कि उनको ख़ून की उल्टियाँ शुरू हो गईं और वह वहीं इंतिक़ाल फरमा गए
जहाँ आपको जलाल में मक़ामे बुलंद हासिल है वहीं आपका करामतों में भी कोई सानी नहीं कि बचपन से ही आपकी ज़ात से करामतों का ज़हूर होने लगा था
एक बार वालिद साहब नमाज़ पढ़ कर मुराक़बा में मश्ग़ूल थे और आप क़रीब ही बैठे थे (उस वक़्त आपने बोलना सीखा था) कि एक बड़ा साँप आपके वालिद साहब पर गिरा, वह कहते हैं कि जब मैंने आँखें खोल कर देखा तो बड़े ही अजीब व ख़तरनाक साँप का आधा हिस्सा मेरे पास पड़ा है और आधा हिस्सा साबिर के पास, मैंने साबिर की वालिदा को जगा कर दिखाया तो उनहोंने कहा अभी मैंने ख़्वाब देखा कि मेरा बेटा साबिर कह रहा है कि मैंने आज साँपों के बादशाह को मार डाला अब कोई साँप मेरे ख़ानदान में कभी किसी को ना काट सकेगा
रब करीम ने आपको बड़ी ख़ूबियों का हामिल बनाया था और फना व बक़ा के फर्क़ को आपने वाज़ेह फरमा दिया
आपका विसाल 13 रबीउल अव्वल 669 हिजरी में हुआ और मज़ारे पाक कलियर शरीफ रूड़की (उत्तराखण्ड) में है इससे पहले जलसे का आगाज़ तिलावते क़ुरान पाक से क़ारी तन्वीर निज़ामी ने किया और हाफिज़ ज़ुबैर क़ादरी मौलाना इरफान क़ादरी ने नात पाक पेश की जलसा सलातो सलाम के साथ खत्म हुआ जलसे के बाद साबिर पिया का कुल हुआ और हाफिज सैय्यद मोहम्मद फ़ैसल जाफ़री ने  दुआ की फिर शीरनी तक़सीम हुई कन्वीनर हाफिज फुजैल रजवी ने आए ने आए हुए मेहमानो का शुक्रिया अदा किया इस मौके पर नूर उद्दीन,शम्सुल हक,मिस्बाहुल हक,अबूज़र,सुहैल अहमद, शकील, तन्वीर अहमद, समीर   आदि लोग मौजूद थे!


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