अपनी नस्लों को सिददीक़े अकबर का दीवाना बनाओ:मौलाना हस्सान क़ादरी

---तन्ज़ीम बरेलवी उलमा-ए-अहले सुन्नत के ज़ेरे एहतिमाम बाबूपुरवा मे यौमे सिददीक़े अकबर मनाया गया ---

कानपुर:रब तआला ने इब्तिदाए दुनिया से अब तक ना जाने कितने लोग पैदा किये और उन बहोतों के नाम उनकी साँसों के साथ ख़त्म हो गए लेकिन उनमें ही कुछ लोग एैसे भी हैं जिन्होंने अपनी सारी जिन्दगी ख़ुदा व रसूल की इताअत में इस तरह गुज़ारी कि रब तआला ने उन हज़रात के हक़ में क़ुरआने करीम में यह इरशाद फरमा दिया (अल्लाह उनसे राज़ी है और वह अल्लाह से) इन्हीं ख़ुश नसीब लोगों को सहाबी होने की इज़्ज़त हासिल हुई

तमाम सहाबा जहाँ हदीसे पाक के मुताबिक़ सितारों की तरह रौशन हैं वहीं यह सारे हज़रात उम्मत के हर फर्द के लिये मिश्अले राह की हैसियत रखते हैं मगर इन हज़रात में जो फज़ीलत यारे ग़ारे रसूल हज़रते सय्यदी अबू बकर सिददीक़ रजि अल्लाहु अन्हु को हासिल है वह किसी सहाबी को हासिल नहीं इन ख्यालात का इज्हार तन्ज़ीम बरेलवी उलमा-ए-अहले सुन्नत के ज़ेरे एहतिमाम बाबूपुरवा मे हुए यौमे सिद्दीक़े अकबर मे तन्ज़ीम के मीडिया इंचार्ज मौलाना मोहम्मद हस्सान क़ादरी ने किया तन्ज़ीम के सदर हाफिज़ व क़ारी सैयद मोहम्मद फ़ैसल जाफरी की सदारत मे हुए जलसे को मौलाना ने आगे कहा कि 
आप बयक वक़्त रसूले पाक के सहाबी भी हैं और ससुर भी, आप ख़लीफतुल मुस्लिमीन भी हैं और अमीरुल मोमिनीन भी, आप मर्दों में सबसे पहले कल्मा पढ़ने वाले भी हैं और रसूले पाक के हर इरशाद पर सबसे पहले लब्बैक कहने वाले भी
सारी दुनिया हज़रते अली को सबसे बहादुर कहे और जब मौला अली से पूछा जाए कि सबसे बहादुर कौन है तो वह हज़रते सिददीक़े अकबर का नाम लें कि जंगे बद्र में जब तमाम सहाबा परेशान थे कि सबसे ज़्यादा ख़तरा हुज़ूरे पाक को है तो वहाँ पहरा कौन देगा? उस वक़्त हज़रते सिददीक़े अकबर आगे आए और फरमाया,, जब तक सिददीक़ के जिस्म में जान है मुस्तफा के क़रीब भी आए इतनी किसी की मजाल नहीं,,
जिस तरह आप मुस्तफा करीम से मोहब्बत फरमाते यूँही मुस्तफा करीम भी आप पर सबसे ज़्यादा महरबान थे कि तमाम सहाबा के बीच मुस्तफा करीम ने एेलान फरमाया,, अबू बकर तुम मुझसे दूर रहते हो तो दिल बेचैन रहता है लिहाज़ा तुम मुझसे दूर मत रहा करो क्यूँकि सारी दुनिया परेशान होकर मेरी बारगाह से सुकून हासिल करती है और जब मुझे बेचैनी होती है तो मैं तुमको देख कर मुत्मइन होता हूँ
हज़रते सिददीक़े अकबर की शान इतनी अज़ीम व बुलंद है कि काएनात के तमाम ज़हनों को एक जगह जमा करके भी उनकी अफज़लीयत व अशरफीयत का अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता
हमें चाहिये कि इस्लाम व मुसलमान के इस सच्चे मोहसिन को फरामोश ना करें, जहाँ हम ग़ौसे पाक की ग्यारहवीं, ख़्वाजा की छटी और उर्से आला हज़रत महीनों तक मनाते हैं वहीं हमें चाहिये कि ग़ौस व ख़्वाजा व रज़ा के ही नहीं बल्कि अम्बिया के बाद तमाम नेकों के सरदार सय्यिदना सिददीक़े अकबर की भी यादें मनाएँ, उनके नाम की महफिलें सजाएँ, अपने समाज व बच्चों को उनकी क़ुर्बानियों और इश्क़ के किस्से सुनाएँ ताकि हमारी आने वाली नस्लें सिददीक़े बा वफा की तरह अपने महबूब की फरमाँ बरदार बन सकें
इससे पहले जलसे का आगाज़  तिलावते क़ुरान पाक से हाफिज़ सिकंदर अज़हरी ने किया
और हाफिज़ ज़ुबैर क़ादरी ने नात पाक पेश की इस मौक़े पर फातिहा ख्वानी हुई और दुआ की गई फिर शीरनी तक़सीम हुई का़री तनवीर निज़ामी, वसीमुल्लाह रज़वी, कमालुददीन, आफताब आलम, नायाब अालम,वज़ीर अहमद, मोहम्मद जुनैद, मोहम्मद तनईम, मोहम्मद तमजीद, मोहम्मद सैफ आदि लोग मौजूद थे जलसा सलातो सलाम व दुआ के साथ खत्म हुआ!

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